सिंधी मतदाताओं को लुभाने का नगरसेविका कांचन लुंड का प्रयास असफल ; लुंड के प्रस्ताव पिछे लेने के बाद शिवसेनेना के दो नगरसेवक मुंह के बल गिरे!
उल्हासनगर (महाराष्ट्र विकास मिडिया)- उल्हासनगर में पिछले कुछ दिनों से उल्हासनगर शहर का नाम बदलकर सिंधूनगर रखने की जोरों से चर्चा थी। उल्हासनगर महापालिका की नगरसेविका एवं स्थायी समिती सभापती श्रीमती. कांचन अमर लुंड इन्होंने उल्हासनगर नाम बदलकर सिंधूनगर रखने का प्रस्ताव रखने के बाद उल्हासनगर-सिंधूनगर की चर्चा शुरु हुई। आखिरकार उल्हासनगर के रहिवासीयों का क्रोध देख और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अपने आक्रमक भुमिका में आते देख नगरसेविका लुंड ने अपना प्रस्ताव वापस लिया। प्रस्ताव वापस लेने का निवेदन सोशल मिडिया में जोरदार व्हायरल हो रहा है।
बता दें कि, सिंधी सामुदाय की नगरसेविका कांचन लुंड द्वारा सिंधी समाज के मतादाताओं को लुभाने के हेतुसे साथ ही आनेवाले विधानसभा चुनाव में अपनी प्रेस्टिज बढाने के चक्कर में कांचन लुंड ने सिंधूनगर नाम रखने का मुद्दा उठाया। गौरतलब हो कि, इस प्रस्ताव को शिवसेना के दो नगरसेवकोंने भी अनुमोदक और सुचक के तौर पर सपोर्ट किया।
उल्हासनगर शहर में पिछले कई वर्षों से समस्याओं की बाढ है। इन समस्याओं को सुलझाने में उल्हासनगर महापालिका प्रशासन और लोकप्रतिनिधी पुरीतरह नाकाम साबित हुए है। ऐसे में समाजसेवा और विकास कार्य करने के बजाय शहर का नाम बदलले में इन तीनों नगरसेवकों को क्यों इतनी दिलचस्पी थी इस बात का अब खुलासा शहर में हो रहा है।
आनेवाले चुनाव में अपना प्रेस्टिज बढाने के चक्कर में जिसप्रकार सिंधी और मराठी भाषा के मतदाताओं के बिज में तनाव पैदा कर फुट डालने का काम अप्रत्यक्ष रुप से नगरसेविका कांचन लुंड साथ ही उनके प्रस्ताव को सपोर्ट करनेवाले दो नगरसेवकों ने किया है उसे देख उल्हासनगर में अपनी राजनैतिक दुकान चलाने के लिए कुछ लोकप्रतिनिधी कितने हद तक गिर सकते है यह उल्हासनगर शहरवासीयों को देखने को मिला।
इन तीनों नगरसेवकों द्वारा जिसप्रकार शहर का नाम बदलकर एक विशेष सामुदाय के लोगों को लुभाने का प्रयास पिछले कुछ दिनों से चल रहा था आखिरकार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और जागृक नागरिकों के वजय से असफल साबित हुआ है।
शहर का नाम बदलने के पिछे राजनैतिक नेताओं का स्वार्थ होने की बाद उल्हासनगर शहरवासीयों को बता चलने के बाद सभी जगहों से नगरसेविका कांचन लुंड पर टिका टिप्पनी होने लगा। साथ ही मराठी भाषा के मतदाताओं ने भी घर का भेदी कहलाये जानेवाले उन दो शिवसेना नगरसेवकों पर नाराजी जताई। शहर के नागरिकों को जोरदार विरोध देख आखिरकार कांचन लुंड ने शहर के नाम को बदलने का प्रस्ताव वापस लिया। नगरसेविका एवं स्थायी समिती सभापती लुंड ने महापौर को लिखित तौर पर प्रस्ताव वापस लेने की जानकारी दी।
मजे की बात यह है कि, कांचन लुंड के प्रस्ताव को देख सिंधी मतदाताओं में लोकप्रिय होने की चाह रखते हुए जिन शिवसेना के दो नगरसेवकों ने बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना की तरह अनुमोदक और सुचक के रुप में सपोर्ट दर्शाया वे दोनो आज मुह की बल गिरे होने की शहर में चर्चा है।
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