विधानपरिषद चुनाव में शिवसेना को मदद करने क्यों दौड आई एम.आय.एम. ?
औरंगाबाद (महाराष्ट्र विकास मिडिया)- औरंगाबाद के राजनिती में छुरी और कद्दू की तरह रहनेवाले शिवसेना और एम.आय.एम. पार्टी विधानपरिषद के चुनाव में एकजुट होने की चर्चा है। लेकिन यह मदद क्यों ? आर्थिक चर्चा के बाद दोनों इस चुनाव में अप्रत्यक्ष रुप से एकजुट होने की शहर में चर्चा है। जिसके कारण अब एम.आय.एम. में और भी गडबडी शुरु हुई है।
विधानपरिषद चुनाव में एमआयएम ने शिवसेना को मतदान करने की चर्चा है। एकजूट होकर एमआयएम के नगरसेवक वोटिंग को आए और वोटिंग के एक दिन पूर्व गुप्त बैठक में तैय किये गये हिसाब से ही वोटिंग भी हुआ। इस बैठक में एजंट का काम शिवसेना और एम.आय.एम. के दो नगरसेवकों ने करने की शहर में चर्चा है। लेकिन वोटिंग करने के बाद भी तय किया हुआ पूरा ना होने से एम.आय.एम. के नगरसेवक भडक गये है।
सुत्रों के अनुसार एजंट के तौर पर दोनों पार्टी में समझौता कराने दो नगरसेवकों को एम.आय.एम. के बाकी के नगरसेवक मंगलवार को दिनभर ढुंढ रहे थे। आखिरकार रात में वे मिले लेकिन उसके बाद भी दिया हुआ आश्वासन पुरा ना होने से जोरदार बहस हुई। इतने हद तक बहस हुई की वातावरण पुरी तरह गरमा गया था।
औरंगाबाद के राजनिती में एक दुसरे के प्रतिस्पर्धक रहे वे दो नगरसेवक सिर्फ और सिर्फ आर्थिक हित को साधने के लिए दोनो एकजूट हुए। उसमे अब शिवसेना ने दिया हुआ आश्वासन पुरा ना करने से अब वे भडक गये है। वोटींग खतम होने से अब आश्वासन पुरा होगा या नहीं यह एक सवाल है जिसके कारण दोनों का समझौता कराने वाले नगरसेवकों ने भी अब दुम दबाकर भागने में ही भलाई मानी है।
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