जोरदार विरोध के चलते अब किलों के लिज के निर्णय पर राज्य सरकार ने लिया यु-टर्न
मुंबई (महाराष्ट्र विकास मिडिया)- गडकिलों को किराये पर देने के निर्णय की खबर पुरे महाराष्ट्र में फैलने के बाद सभी स्तरों से महाराष्ट्र सरकार पर जोरदार टिका हो रही थी। यह देख सरकार ने पहले तो मिडीया दोष देते हुए कहा कि यह सब झुठी अफवाह है। लेकिन जब सरकार को अपनी गलती समझ में आई तब जाकर बडे ही सरलता से सरकार ने यु टर्न लिया है।
किलों को किराये पर देने के खबर के फैलने के कुछ समय बाद ही पर्यटन सचिव विनीता सिंघल के नाम का एक पोस्ट सोशल मिडिया में व्हायरल किया गया है। इस पोस्ट में विनीता सिंघल कहते है कि, राज्य में दो प्रकार के किले है। एक वर्ग 1 और दुसरा वर्ग 2. महाराष्ट्र के आराध्यदैवत छत्रपती शिवाजी महाराज के जीवन से संबंधीत और अन्य ऐतिहासिक संदर्भ के किले यह वर्ग 1 में आते है और अन्य 300 से अधिक जो किले है वह वर्ग 2 में आते है।
वर्ग 1 के किले संरक्षित वर्ग में आते है। केंद्र और राज्य सरकार का पुरातत्व विभाग इन किलों की देखरेख का काम करती है और इन किलों के विकास का स्वतंत्र कार्यक्रम लिया गया है। इसलिए ऐतिसाहिक वारसा के रुप में उसका जतन किया जाता है। छत्रपती शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य से संबंधीत किले किसी भी हालत में ऐतिहासिक रुप से ही जतन किये जाएंगे और इनकी पवित्रता हमेशा कायम रहेगी।
लेकिन वर्ग 2 के किले जो असंरक्षित वर्ग में आते है। उनका पर्यटन विभाग के लिए ऐतिहासिक स्थल के रुप में विकास का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है। इसलिए इन किलों में शादी, जन्मदिन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए किलों को किराये पर देने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। एक अखबार की खबर से गलत अंदाजा ना लगाए।
सुत्रों के अनुसार सरकार ने बिलकुल भी सोचा नहीं था कि किलों को लिज पर लेने के निर्णय से सरकार पर इतने बडे पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होगा। निर्णय के कुछ घंटों में ही मिडिया, आम जनता, विपक्ष सभी ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठाना शुरु किया। आखिरकार यह सब देख सरकार को मिडिया और आम नागरिकों के सामने आना ही था ऐसे में सरकार ने अपने बचाव में युटर्न लेते हुए पर्यटन विभाग द्वारा अपना स्पष्टीकरण देना ही ठिक समझा।
पर्यटन विभाग के स्पष्टीकरण देने के बाद भी कई सवाल उपस्थित हो रहे है। इन किलों के वर्गवारी की बात इसके पहले कभी पर्यटन विभाग द्वारा क्यों की नहीं गई ? किलों के संवर्धन के लिए तथा उनके सेफ्टी के लिए आज तक पर्यटन विभाग ने किसी भी तरह के कदम नहीं उठाए आखिरकार उन किलों का वर्गवारी कर कुछ किलों को प्रायव्हेट कंपनी को लिजपर देने का निर्णय अब भी सही माना जा रहा है इसपर पर्यटन विभाग कुछ क्यों नहीं कहती ? किलों के मरम्मत के नाम पर जिस प्रकार का निर्णय लिया जा रहे है इस निर्णय को देख ठेकेदार को गडकिला लिजपर देने बात गलत है?
इसके पहले भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा इसी प्रकार के तुगलकी फर्मान निर्णय लिये गये थे। नागरिकों को याद होगा जब कुछ दिनों पुर्व बाढ के वक्त बाढपिढीतों को राहत देने के लिए सनकी जी.आर. सरकार ने निकाला था। उस वक्त भी सरकार ने जो जी.आर. निकाला बातमें बाढपिढीतों का क्रोध देखकर और विरोध देखकर सरकार ने अपने बचाव में युटर्न लिया इस बार भी कुछ ऐसा ही तो सरकार नहीं कर रही ऐसी शंका नागरिकों को सताए जा रही है।
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